शनिवार, 30 जून 2012

कैसे बनाएं घर का सही बजट

दिव्या सक्सेना = आपकी मासिक आमदनी कहां खर्च होती है? क्या आपने कभी इस बात का हिसाब लगाया है कि आपके घर पर आपकी आय का कितना खर्च हो रहा है। आपको पता होना चाहिए कि अगर आप घर का बजट बनाते हैं तो आप काफी पैसा व्यर्थ नष्ट होने से बचा सकते हैं। इसके साथ ही आप चीजों की सही लागत का अनुमान भी लगा सकते हैं।

घर का बजट प्रबंधन करने से क्या अर्थ है-

बजट बनाने का अर्थ घर के सभी खर्चों का हिसाब लगाने से कहीं बढ़कर है। इसके जरिए आप हिसाब लगा सकते हैं कि आपकी आय में से कितना खर्च होता है और कितना इसमें से बचाया जा सकता है। घर का बजट बनाने का अर्थ है कि आप अपनी जीवन-शैली का अनुमान लगा रहे हैं। समय पर बिल भुगतान करना, कर्जों का सही समय पर निपटारा करना और अपने बचत, निवेश लक्ष्यों को हासिल करना भी इसी के अंतर्गत आता है।

घर का बजट बनाने का सबसे सही उपाय है कि आप खर्चों के लिए अलग-अलग लिफाफे बनाएं( किराए, बिजली बिल, कार ईएमआई इत्यादि) इसके जरिए आप बिल्कुल सही तरीके से जान पाएंगे कि कि कितना पैसा किस मद पर खर्च हो रहा है। और अगर कुछ बचता है तो आप बची हुई राशि को अगले महीने के लिए बचाकर रख सकते हैं या फिर अपनी बचत के रूप में अलग भी रख सकते हैं।

आप अपनी मासिक आमदनी का हिसाब लगाएंगे तो आप को पता चलेगा कि आप कि कौन से खातों से कर्ज चुकाने हैं और कौन से खातों में आपकी आमदनी जा रही है।

बड़ा सवालः शुरुआत कहां से करें?

योजना बनाने से शुरूआत करें

शुरूआत के लिए अपनी छोटी से बड़ी जरूरतों और इच्छाओं की लिस्ट बनाकर देखें- खर्चों को जरूरतों और चाहतों के बीच बांटने से आपको ज्ञात होगा कि जीने के लिए किन चीजों की जरूरत है और कौन-कौन से खर्चे सिर्फ आपकी जीवन-शैली को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक हैं।

•बजट का एक उपयुक्त फॉर्मेट बनाएं

आप इन्हें इंटरनेट से डाउनलोड कर सकते हैं-आपको अपनी मासिक आय के हिसाब से चलना होगा और इसके आधार पर ही लागत निकालनी होगी। तो सारी अंकगणना और हिसाब-किताब इस तरह से करें कि आपके साल भर का बजट तैयार हो जाए। एक हफ्ते के बजट को 52 हफ्तों से गुणा करें और इसके बाद देखें कि आपकी सालाना आमदनी में ये फिट हो रहा है या नहीं। अगर ये सही तरह से फिट नहीं हो रहा है तो इसका मतलब है कि आपकी गणना में कोई गलती है। एक महीने के बजट को 12 से गुणा करें। इसी तरह तिमाही बजट को 4 से गुणा करें जिससे आपको पता चले कि आपका हिसाब आपकी जरूरतों के हिसाब से सही है या नहीं।

•सिर्फ बजट बनाना ही काफी नहीं है, इसे देखें कि आपका बजट केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि असली जिंदगी में भी सही चल रहा है या नहीं। एक सही बजट वही है जो देखने में भले ही साधारण हो लेकिन आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल साबित हो।


अब जब आपको पता लग गया है कि आपका पैसा कहां खर्च हो रहा है और आपकी वास्तविक जरूरतें क्या हैं तो आप हर थोड़े दिनों बाद बजट का विश्लेषण भी कर सकते हैं।

•मॉल की बजाए लोकल खरीदारी करें-

हो सकता है कि सुपरमार्केट में आपकी सारी जरूरतों की चीजें एक साथ मिल जाती हैं लेकिन अगर आप थोड़ा सा खोजें और कीमतों की तुलना करें तो पाएंगे कि लोकल दुकानों पर भी समान उत्पाद मिल जाते हैं वो भी कम कीमत पर।


•आकस्मिक खर्चों के लिए तैयार रहें-

कार मरम्मत, चिकित्सा खर्च, शादी और जन्मदिन, घरेलू उपकरणों का रख-रखाव, आकस्मिक यात्राएं ऐसे खर्च हैं जिनके लिए आपके बजट में कुछ स्थान जरूर होना चाहिए।


बढ़ती महंगाई के दौर में अपने बजट को हर महीने जांचे और देखें कि इसमें कुछ नए प्रबंध करने की गुंजाइश है क्या। इसके अलावा हर तीन महीने के बजट को भी दुबारा जांचे। जिस हिसाब से महंगाई बढ़ रही है उसको देखते हुए ये काफी जरूरी है।
घर का बेहतरीन बजट बनाने और संभालने के टिप्स

• जिम्मेदारियां बांटे-

अगर आपके परिवार में वयस्क और युवा लोग हैं तो बेहतर होगा कि उन्हें भी इस बात की जानकारी हो कि एक पूरे महीने मासिक आमदनी को कैसे चलाया जाता है। इसके अलावा अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उन्हें भी इसकी जानकारी दें और सिखाएं कि बजट कैसे बनाया जाता है। आप निश्चित ही ये देखकर हैरान होंगे कि आपके बच्चों के पास कितने नए और उपयोगी सुझाव हैं।

•लक्ष्य निर्धारित करें

हर महीने कुछ पैसे बचाने का लक्ष्य बनाएं और इसके जरिए कुछ हासिल करने पर खुशी महसूस करें। चाहे वो कोई मोबाइल हो, या छुट्टी पर बाहर जाने का प्रोग्राम हो। इसके लिए एक तरीका है कि आप छोटी-छोटी चीजों के लिए क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से बचें और ईएमआई पर वस्तुएं खरीदनें से बचें। बल्कि हमारा सुझाव है कि अपना कार्ड दूर रखें और बहुत जरूरत होने पर ही इसका उपयोग करें, कैश का ज्यादा इस्तेमाल करें।

•जरा हटकर सोचें-

आकस्मिकताएं प्राकृतिक होती हैं, और ऐसे में आपको पैसे की काफी कमी महसूस हो सकती है। जरूरी है कि आप घबराएं नहीं और ऐसे उपाय ढूंढें जिनसे खर्च कम हो, बचत ज्यादा।

•अपनी चाहतों को फिर से जांचे-

अपनी अर्थपूर्ण चाहतों और अनावश्यक इच्छाओं को अलग करें। कुछ चीजें जो किसी समय काफी आवश्यक लगती हैं समय के साथ अपने आप बदल जाती हैं।

•कुछ बदलाव के लिए तैयार रहें-

बजट बनाने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं। ये आपकी आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए ना कि कोई वित्तीय बंधन।

एक अच्छा बजट आपको पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है। इसके जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं और चिंताओं को बढ़ाने के बजाए मजे उठा सकते हैं। हां सबसे अहम बात- ये आपको आर्थिक समस्याओं से लड़ने की ताकत तो देता ही है।


शनिवार, 9 जून 2012

फिल्म : "फरारी की सवारी"

विधु विनोद चोपडा प्रोडक्शन्स की प्रस्तुति फिल्म "फरारी की सवारी" आज रिलीज हो गई है। विधु विनोद चोपडा द्वारा निर्मित इस फिल्म में संगीत प्रीतम चक्रवर्ती ने दिया है। शरमन जोशी, बोमन ईरानी ऋत्विक साहोरे, विद्या बालन (मेहमान कलाकार) द्वारा अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक राजेश मापुस्कर हैं।
"फरारी की सवारी" पिता और पुत्र के रिश्ते पर आधारित है। रूसी के बेटे को क्रिकेट के अलावा कुछ भी नहीं सूझता। बडा ऊचा सपना देखा है उसने लाड्र्स क्रिकेट ग्राउंड पर खेलने का। रूसी अपने बेटे पर जरूरत से ज्यादा ही मोहित है। वह उसका हर सपना पूरा करना चाहता है, भले ही अधिकांश पर उसका बस नहीं है।
सीधा सादा और ईमानदार इंसान रूसी एक दिन चमचमाती लाल फरारी बिना उसके मालिक को बताए एक घंटे के लिए मांग कर ले आता है। उसे नहीं पता था कि फरारी उसके हाथ लगते ही उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाएगा। फरारी में बैठते ही एक पागलपन भरा सफर शुरू होता है। इस सफर में कई दिलचस्प किस्म के लोगों से मुलाकात होती है। जैसे एक वेडिंग प्लानर, लारेस और हार्डी जैसी जोडी, लालची नेता और उसका लापरवाह बेटा, कार चुराने वाला मैकेनिक उनके हमसफर बनते हैं।
बेईमान और चोरों से भरी दुनिया में जब फरारी भागती है तो कई जख्म रहे हो जाते है औ दुश्मनी के अध्याय फिर खुल जाते हैं। एक रात में इतना कुछ घट जाता है कि कई लोगों की जिंदगी की दिशा बदल जाती है।

रविवार, 3 जून 2012

जावेद अख्तर ने कहा, माफी क्यों मांगें आमिर


मुंबई। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अपने कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते' के जरिए मेडिकल समुदाय के प्रति 'गलत संदेश' भेजने को लेकर इस कार्यक्रम के प्रस्तोता और फिल्म अभिनेता आमिर खान से माफी की मांग की है लेकिन गीतकार जावेद अख्तर ने आईएमए की मांग को गलत बताया है।
अख्तर ने तो यहां तक कहा कि आमिर से माफी मांगने सम्बंधी आईएमए का फैसला गलत है। अख्तर ने ट्विटर पर जारी अपने संदेश में लिखा है कि आईएमए ने आमिर से माफी की मांग की है। यह गलत है। आमिर को ऐसा इसलिए कहने को कहा जा रहा है क्योंकि उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र की गलतियों को उजागर किया है।
कन्या भ्रूण हत्या और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालने के बाद आमिर ने अपने कार्यक्रम के एक एपिसोड में स्वास्थ्य पेशे में जारी गलत कार्यों को उजागर करने का काम किया था।
इसी एपिसोड पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए देश की सबसे बड़ी मेडिकल संस्था-आईएमए ने आमिर से माफी की मांग की है। अख्तर ने इस बारे में लिखा है कि आमिर नहीं बल्कि कुछ लालची, अनैतिक और भ्रष्ट डॉक्टर इस पेशे और ईमानदार डॉक्टरों की तौहीन कर रहे हैं।IBN

शुक्रवार, 1 जून 2012

'राउडी राठौर': फ़ॉर्मूले के रण में राठौर




Movie Name:
राउडी राठौर
Viewer Rating: 
Critic Rating:
(1/5)
Star Cast:
अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा
Director:
प्रभु देवा
Producer:
संजय लीला भंसाली, शबीना खान, रॉनी स्क्रूवाला
Music Director:
साजिद-वाजिद
Genre:
एक्शन
कहानी

‘मैं नहीं डरता मौत से। मौत डरती है मुझसे’, एएसपी विक्रम राठौर दहाड़ते हैं। जब वे बीसियों लोगों का सिर फोड़ देते हैं और एक ही मुक्के से उन्हें मच्छरों की तरह उड़ा देते हैं तो आपको उनकी बात पर भरोसा होने लगता है। धरती थरथराती है। जब आखिरकार राठौर धराशायी होते हैं तो लगता है कि शायद उन्होंने अब दम तोड़ दिया है। लेकिन ठीक तभी बादल घिर आते हैं, उनके मुंह पर पानी की एक बूंद गिरती है और धुंआधार बारिश होने लगती है। राठौर फिर से रण में हैं। तालियां। तड़, तड़ाक!




लेकिन, वास्तव में यह शख्स आखिर है कौन? फिल्म में इससे पहले जब नायक एक कमरे में महिलाओं से घिर जाता है, तो वे उससे यही सवाल पूछती हैं। बॉलीवुड के अन्य सितारों का हवाला देते हुए वे उससे पूछती हैं : तुम आमिर की तरह क्यूट नहीं, तुम्हारी बॉडी सलमान-सी नहीं, तुम हितिक रोशन सरीखे बांके-छबीले नहीं.. तुम अपने को समझते क्या हो? ‘आप खिलाड़ी को भूल गईं,’ नायक उन्हें याद दिलाता है। आह, खिलाड़ी, यक़ीनन, हम उसे भूल गए थे।



1990 के दशक के दौरान जब बॉलीवुड की सभी फिल्में कमोबेश एक-सी हुआ करती थीं, इस फिल्म के नायकअक्षय कुमार फिल्म पत्रिकाओं में महिलाओं के बीच खिलाड़ी और ‘खिलाड़ी’ श्रंखला की फिल्मों के एक्शन स्टार हुआ करते थे। यहां वे उचित ही दर्शकों को अपनी मौजूदगी का अहसास कराते हैं और इसकी वजह यह है कि शायद ‘कॉमिक-एक्शन मसाला एंटरटेनर्स’ की वापसी हो चुकी है, जिसका श्रेय दक्षिण भारतीय फिल्मों की रीमेक्स और आमिर खान की ‘गजनी’ (२००८) और सलमान खान की ‘वांटेड’ (२००९) जैसी फिल्मों की कामयाबी को दिया जाना चाहिए।







तेलुगु फिल्म ‘पोखिरी’ पर आधारित ‘वांटेड’ एक ‘चांस हिट’ थी और इस फिल्म के कारण सालों बाद देशभर के एकल ठाठिया छबिगृहों में सिक्कों की बारिश हुई थी। इसके बाद सलमान ने इसी तरह की तीन और ‘सुपर हिट’ फिल्में दीं : ‘दबंग’ (२क्१क्), ‘रेडी’2011) और ‘बॉडीगार्ड’ (२०११)। ‘दबंग’ की ही तरह ‘राउडी राठौर’ भी कॉप-ड्रामा है, जिसकी आंशिक पृष्ठभूमि पूर्वी भारत है (पूर्वी उत्तरप्रदेश के बजाय गंवई बिहार), ‘रेडी’ के ‘ढिंका चिका’ की ही तरह इस फिल्म में भी हीरो ‘चिंताता चिता चिता’ की धुन पर ठुमकता है और (बेतुकी और बकवास) ‘बॉडीगार्ड’ की ही तरह यह फिल्म भी बेसिरपैर है। हम देख सकते हैं कि हमारे फिल्मकार किन फिल्मों से प्रेरणा पा रहे हैं।





‘वांटेड’ के निर्देशक प्रभु देवा ने उस फिल्म के जरिए उम्र की चालीसा पार कर चुके सलमान खान को किसी दक्षिण भारतीय सुपर सितारे के समकक्ष ला खड़ा कर दिया था। सलमान हिंदी फिल्मों के रजनीकांत और गरीबों के मसीहा नायक बन गए। प्रभु देवा ‘राउडी राठौर’ के भी निर्देशक हैं। शायद सुपर सितारे के ओहदे तक एक ही व्यक्ति पहुंच सकता है : रजनी या सलमान, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि दूसरे कोशिश करना छोड़ दें। हम उम्मीद कर सकते हैं कि दूसरों की कोशिशें कारगर साबित हों। पिछले साल ‘सिंघम’ में अजय देवगन ने ऐसी ही गुर्राहट भरी कोशिश की और वे कामयाब हुए। अक्षय कुमार ‘राउडी राठौर’ में दोहरी ताक़त से कोशिश करते हैं। इस फिल्म में वे दोहरी भूमिका में हैं। फिल्म का पोस्टर दर्शकों को लुभाता है : ‘एक टिकट में डबल धमाका’।ज़ाहिर है, हम सभी रोमांचित हो उठते हैं।




लेकिन अंतत: कहानी का दमदार होना सबसे ज़रूरी होता है। फिल्म के तेलुगु मूल ‘विक्रमकरुडु’, जिसमें रवि तेजा नायक थे, का तमिल और कन्नड़ संस्करण बन चुका है और उसके एक बांग्ला संस्करण पर काम चल रहा है। फिल्म को मलयालम, हिंदी और भोजपुरी में पहले ही डब करके रिलीÊा किया जा चुका है। आखिर, इस कहानी में भला ऐसी क्या बात है?







देवगढ़ (जिसके नाम की तुक ‘शोले’ के रामगढ़ से मिलती है) नामक एक वीरान क़स्बे में बापजी (शायद यह नाम सनी देओल की ‘नरसिम्हा’ से प्रेरित है) की तूती बोलती है। महिलाओं का बलात्कार करना उसका प्रिय शग़ल है। वह पुलिसवालों की बीवियों को भी उठा ले आता है और वे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। इसी चूहेदानी में राठौर का पदार्पण होता है। राठौर के दफ्तर की दीवार पर गांधी के बजाय भगत सिंह की तस्वीर टंगी है। हम समझ जाते हैं कि वह बापजी को ठिकाने लगा देगा।







लेकिन अचानक राठौर गुम हो जाता है, या शायद उसे मार दिया गया है। उसका एक हमशक़्ल मुंबई में है, जिसका नाम है शिवा। उसे राठौर की जगह बड़ी आसानी से फिट किया जा सकता है, बस उसकी मूंछें तनिक ऐंठदार हैं। वह एक मामूली ठग है। (सोनाक्षी सिन्हा ने उसकी गर्लफ्रेंड)







की भूमिका निभाई है और उनकी भूमिका राठौर की ही तरह बेतरतीब है।) लेकिन यह हमशक़्ल भोंदू नहीं है और वह राठौर की ही तरह दुश्मनों का भुर्ता बनाने में सक्षम है। जैसाकि वह कहता भी है : ‘जो मैं बोलता हूं, वो मैं करता हूं। जो मैं नहीं बोलता, वो डेफिनेटली करता हूं।’ तब हमारा जी करता है कि काश उसने एक्शन के बजाय थोड़ी और कॉमेडी की होती, ‘डॉन’ के हमशक्ल विजय की तरह, लेकिन उसके शब्द यहां उसे दग़ा दे जाते हैं।




अक्षय कुमार दोहरी भूमिकाओं में भी एक जैसे ही हैं, ठीक वैसे ही, जैसे यह फिल्म भी हाल ही में या गुÊारे सालों में रिलीज हुई किसी भी अन्य एक्शन फिल्म से अलग नहीं है। एक पिटे हुए फॉमरूले की यही गत होती है। जहां तक बॉक्स ऑफिस के अंकगणित का सवाल है तो फिल्म के निर्माताओं संजय लीला भंसाली और यूटीवी को पूरा यक़ीन है कि आज के दर्शक यही देखना चाहते हैं। शायद यह सच भी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या दर्शक इससे बेहतर के हक़दार नहीं हैं? पता नहीं। एक टिकट की क़ीमत के लिहाज से फिल्म में पर्याप्त बारूद है। ‘मुझे ग़ुस्सा मत दिलाना,’ अक्षय कुमार का किरदार एक बार फिर दहाड़ता है (क्रुक या कॉप, इससे फ़र्क नहीं पड़ता)। प्लीज , प्लीज , अब मुझे बिल्कुल ग़ुस्सा मत दिलाना,’ आप मन ही मन प्रार्थना करने लगते हैं, और आपका सिर, जो एक बिंदु के बाद दर्द करने लगा था, ठीक होने का नाम नहीं लेता।

 

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